तो ये सफर था, कुछ यारों के साथ चांदनी रातों का लुफ़्त उठाने के लिए । कोई खिताब नहीं रचना था । बस अंदर से आ रही आवाज़ के साथ यूं ही चल दिए थे। तब हमें समझ आया की ये खूबसूरत सुहानी रातें महज सोने के लिए नहीं बनी है। इससे भी बढ़कर इनका वजूद है,और शायद ये हमें उस रात समझ आया। फिर हम उस से भी बेहतर तलाश के लिए चल दिए । थोड़ा डर तो था,पर नजारों को देखते ही लगा मानो ये खुद ही अपने होने का एहसास जता रही हो । हम आगे बढ़ते गए खूबसूरती को महसूस जो करना था। फिर धीरे धीरे हम जाम घाट की ओर आगे बढ़े, बढ़ते ही देखा की भेड़ों का झुंड अपनी तरफ आ रहा था । हम थोड़ा सहमे गाड़ी थोड़ी धीरे कर के देखा उनका मालिक हमारी ही तरफ आ रहा था। जिसने मिलते ही उस पहाड़ के शेर की चेतावनी दी,रात का समय और हमारी मंज़िल थी जामघाट की पहाड़ी । डर का साया और ऊपर से हम तीन ,फिर भी हम धीरे धीरे घाटी चढ़ने लगे तभी कुणाल ने मेरा और सचिन का नाम लिया और कहा कि ऊपर देख और हम देखते ही रह गए । वो मंज़र काबिल -ए-तारीफ था या शायद उस से भी बढ़कर। उनको देखते ही लगा
"मानो ये चांद सितारे कितने पास है हमारे
फिर भी क्यूं बंद है खूबसूरती भरे इनके राज के पिटारे "
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उस खूबसरती भरे दृश्य को अपनी आंखों में कैद कर हम वापस मंज़िल की ओर बढ़ चले और बीच बीच में, मै और कुणाल अगल बगल भी निगरानी रख रहे थे। डर तो था पर साथ थे तो जुनून और मज़ा उससे दो गुना था । धीरे धीरे हम जामगेट पहुंचे और देखा तो लगा कि चांद अब बस कुछ बोलने को है, सारा आसमान सजा था तारों से, हमने फिर बाइक से उतर के देखा और सचिन को कहा हैडलाइट बंद कर , लाइट बंद होते ही हमें समझ आया कि खूबसूरत चीज खतरनाक भी होती है । हम डर के बाइक में बैठे और गाड़ी घुमा ली उधर से हमारी तरफ एक बाइक आ रही थी । पास आते ही देखा कि वो तो ऋषि और धीरज है। ठंड भी लग रही थी, तापमान तेज़ी से नीचे गिर रहा था । और आग जलाने के लिए माचिस नहीं मिल रही थी। जैसे तैसे हमने लकड़ियां इकठ्ठा की और आग जलाया और वहां बैठ के........
एक मिनिट" आपने कभी अपने किसी दिल के करीबी को सोते हुए देखा है ?
और नहीं तो कभी देखना आपकी धड़कन एक मद्धम होकर सुकून भरी सांस लेंगी ।
वैसा ही कुछ सुकून मुझे मिल रहा था । उन तारों की टिमटिमाहट को देख कर मै बेबाक सा था और साथ ही यारों की बेबुनियादी बातें, शायद जन्नत ऐसा ही होता होगा।
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मैंने सोचा अब मामला और भी संगीन था। क्योंकि हमें घाट उतरना था। जहां जंगली जानवरों से भी मुलाकात हो सकती थी । हां शायद मुतभेड़ भी, घाट से गाड़ी नीचे उतारते ही गाड़ी नर्मदा के तट पे लगा दी वहां का दृश्य लाजवाब था । एक तरफ रात अपने हिस्से की मेहमान-नवाजी कर के जा ही रही थी तो दूसरी तरफ कितनो के सपनो को कांधे में लिए दिन सूरज को ऊपर चढ़ा रहा था और ना भूलने वाली यादों को
हमने कुछ तस्वीरों में रख के सूरज की पड रही किरणों को नमस्कार कर हम घर को लौट चले और डर रोमांच सुकून और कुछ बेतुकी बातों से भरे इस सफर को पूरा कर हम आप तक ले आए ।
सफर से जुड़े चंद शब्द।
"उस चांद में कुछ खास बात नहीं है । पर उसको समझ पाना कोई आम बात भी नहीं है।"
धन्यवाद्
अमितेश सिंह
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